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अशोक गहलोत ने राजस्थान सरकार के खिलाफ धरने का ऐलान किया

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अशोक गहलोत ने राजस्थान सरकार के खिलाफ धरने का ऐलान किया

जयपुर: राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाल ही में भाजपा सरकार के खिलाफ धरना देने का ऐलान किया है। उनका यह कदम खासतौर पर गांधी वाटिका म्यूजियम के उद्घाटन में देरी को लेकर है, जिसे पिछले गहलोत सरकार ने स्थापित किया था। गहलोत ने बताया कि म्यूजियम का उद्घाटन एक साल पहले किया गया था, लेकिन यह अब तक जनता के लिए खुला नहीं है।

गांधी वाटिका म्यूजियम का महत्व

गांधी वाटिका म्यूजियम का निर्माण महात्मा गांधी के जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को दर्शाने के लिए किया गया था। इस म्यूजियम में लगभग 85 करोड़ रुपए की लागत आई है और इसे विश्वस्तरीय मानकों पर विकसित किया गया है। गहलोत ने कहा, “यह म्यूजियम गांधीजी के सत्य और अहिंसा के संदेश को फैलाने का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।”

धरने की घोषणा

गहलोत ने ट्वीट करते हुए कहा कि वह 28 सितंबर को सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक धरना देंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखकर म्यूजियम को आम जनता के लिए खोलने की अपील की थी, लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा, “सरकार की इस हठधर्मिता के विरोध में हम एकजुट होंगे।”

भाजपा सरकार का कदम

पिछले साल दिसंबर में जब भाजपा सरकार आई, तो सबसे पहले गांधी वाटिका न्यास को निरस्त किया गया। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री सुमित गोदारा ने विधानसभा में बताया कि यह विधेयक गांधीजी के विचारों के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए लाया गया था। इस कदम ने कांग्रेस पार्टी के भीतर असंतोष पैदा कर दिया है, जिसके चलते अब गहलोत धरने का आयोजन कर रहे हैं।

उद्घाटन की यादें

गांधी वाटिका का उद्घाटन पिछले साल सितंबर में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी द्वारा किया गया था। यह म्यूजियम गांधीजी के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करता है, जिसमें उनके दक्षिण अफ्रीका के अनुभव, भारत में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान की गतिविधियां और उनके विचार शामिल हैं।

गहलोत का धरना केवल एक व्यक्तिगत विरोध नहीं है, बल्कि यह राजस्थान की जनता की आवाज को भी दर्शाता है। गांधी वाटिका म्यूजियम, जो महात्मा गांधी के विचारों का प्रचारक होना चाहिए, अब एक राजनीतिक विवाद में फंस गया है। देखना यह होगा कि क्या भाजपा सरकार इस मुद्दे को सुलझाने में सक्षम होगी या यह धरना एक बड़े आंदोलन का हिस्सा बनेगा।

राजस्थान की राजनीति में यह घटना न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बनी हुई है।

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